गर प्रणय दिया तुमने.... उसको तो छुपा लूंगी,
बहारें बनेगीं साथी... मेरा प्रेम छुपा लेंगी,
फूलों की खिलती कलियां... ढक देंगी मेरे गालों को
इस दिल की मस्त धड़कन... ये पवन छुपा लेगी,
झरनों के मस्त नगमें.. नदियों का गाता पानी,
मेरे फूल से होठों के... गीतों को छुपा लेंगे
गर विरह दिया तुमने... उसको भी सह मैं लूंगी,
काँटे बनेंगे साथी... मेरी आंहे दबा देंगे,
रेतों के गर्म अंधड़.. टूटे हुए ख्वाबों को
ढहती हुइ कब्रों के... कुछ नीचे दबा देंगे,
पर क्या करूंगी फिर मैं..... जब आयेगा तेरा उत्सव,
जब गांव का हर साथी.. .. तेरा नाम पुकारेगा,
छेड़ेंगे सभी मुझको... पूछेंगे पता तेरा
तेरी बिरह की वो टूटन ... तेरे प्रेम की वो सिहरन,
तब बावरी सा चेहरे ... आंसू से भरी आंखें,
किस- किस से छुपाऊंगी.... कैसे मैं छुपाऊंगी
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